सद्यस्नात<ref>इसी समय नहाई हुई, तुरन्त नहाकर आना</ref> तुम
जब आती हो
मुख कुन्तलों<ref>केश, बाल</ref> से ढँका रहता है
बहुत बुरे लगते हैं वे क्षण जब
राहू से चाँद ग्रसा रहता है ।
पर जब तुम
केश झटक देती हो अनायास
तारों-सी बूँदें
बिखर जाती हैं आसपास
मुक्त हो जाता है चाँद
तब बहुत भला लगता है ।
शब्दार्थ
<references/>