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दो प्रेमी / सुन्दरचन्द ठाकुर

यह न सोचिए कि हमें न था मालूम कि मार दिए जाएंगे
प्यार को राह पर छोटे से सफर में ही हम जान गए थे
अपने प्यार की खातिर उठाया हो किसी ने कितना ही जोखिम
दूसरे के प्रेम में सबको खोट नज़र आया है

दूसरों का प्रेम अपने शरीर से बहार घटता है
आत्मा से तो कोसों दूर

इसलिए जब हमें चारों ओर से घेर लिया गया जैसे किसी आदमखोर बाघ को
उसके सताए गुस्से से भरे लोग घेर लेते हैं आंखों में उन्मादी हिंसा भरे हुए
और हमारे सिरों के ऊपर धारदार कुल्हाड़ी की चमक कौंधी
मृत्यु हमारे लिए दहशत न बन सकी
बल्कि चारों ओर बंद रास्तों के बीच वह बनी अकेली एक खुली राह
जिस पर हमारे साथ चलने पर किसी को कोई एतराज न था
जिस पर हम आगे बढ़े जैसे बढ़ना ही चाहिए सच्चे प्रेमिओं को
उतनी ही बेतकल्लुफी से जैसे डूबते हुए सूरज को देखते हुए
वे बढ़ते हैं समुद्र की गीली रेत पर
मिट जाने को छोड़ते निशान।