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दो षटपदियां / रणजीत

टेक टेक कर घुटने एक एक के आगे
फैला फैला हाथ निवेश विदेशी माँगे
आवभगत में देशभक्ति सब गिरवी रख कर
हर उपक्रम में वि-निवेश के गोले दागे
स्वागत में सब झाड़ दी स्वाभिमान की गर्द
अटल देश को दे दिया घुटनों का यह दर्द।

एक एक कर खोले घर के सब दरवाजे
कोई आये लश्कर लेकर और बिराजे
करे मुक्त व्यापार देश को खुलकर लूटे
जब तक चाहे राज करे, जब चाहे रूठे
बस तुमको देता जाए वेतन और भत्ते
कोठी, कामिनियाँ और कपड़ लत्ते।