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दो हज़ार सत्तर में / महेश अनघ

मुहरबंद हैं गीत
खोलना दो हज़ार सत्तर में

जब पानी चुक जाए
धरती सागर आँखों का
बोझ उठाए नहीं उठे
पक्षी से पाँखो का
नानी का बटुआ
टटोलना दो हज़ार सत्तर में

इसमें विपुल-वितान तना है
माँ के आँचल का
सारी अला-बला का मंतर
टीका-काजल का
नौ लख डालर संग
तोलना दो हज़ार सत्तर में

छूटी आस जुडाएगी
यह टूटी हुई क़सम
मन के मैले घावों को
यह रामबाण मरहम
मिल जाए तो शहद
घोलना दो हज़ार सत्तर में