श्याम श्याम श्याम श्याम, श्याम श्याम श्याम सखे,
हृदय से जिस ने पुकारा श्याम साँवरे।
छूट गयी देह नेह, छूट गये गेह गली,
छूट परिवार घर, छूट गया गांव रे।
नाम रस रटना से, रसनासरस हुई,
क्षुद्र भव सिन्धु में है, डगमग नाव रे।
तुमको पुकारती हूँ, नैया के खिवैया श्याम,
टेर टेर अब मेरे, प्राण हुए बावरे।।91
श्याम श्याम जपते जो, तजा आन मान सब,
ढीली हुई मुट्ठी रहा, ध्यान न वसन का।
परिकर-बन्द भी था, खुला नीवी बन्ध ढीला,
अस्त व्यस्त केश वेश, ध्यान न था तन का।
खुद को संभाले क्या वो, लोक लाज पाले क्या वो,
जिस को न ध्यान रहा, अपने ही मन का।
स्वयं समर्पिता थी, सृजक को सृष्टि मानो,
पा रहे थे प्राण सुख, नाम के रतन का।। 92।।
उठी वो हृदय से थी, करुणा भरी पुकार,
सरिता सी जब फूट, पड़ी वह उर से।
मधु मक्षिकायें झुण्ड, झुण्ड हो के एक साथ,
मधु लूटने को जैसे, निकलीं हों घर से।
अगणित लड़ियों में, या कि ले असंख्य बूंदें,
बादल घनेरेजैसे, बरखाके बरसे।
मानो रणबांकुरे हों, युद्ध में शरासनों से,
करते सन्धान एक, साथ कोटि शर से।। 93।।