Last modified on 24 मार्च 2014, at 12:57

द्रौपदी / मन्त्रेश्वर झा

चीरहरण तऽ हेबे करत द्रौपदी
केश बान्ही कि खोली
इतिहास दोहरबैत रहत सभ दिन
धृतराष्ट्रक राज मे
आन्हर कानून के शासन छै
संग मे दुश्शासन छै
शकुनी एखिनियो छै चीफ आर्किटेक्ट
बनओने चौपड़ के मुकुट
भोट के, जूआ के
धेने छै चिरकुट
युधिष्ठिरक भरोसे जुनि रहू द्रौपदी
बापके आज्ञाकारी
नपुंसक बेटा
दुर्योधनक संग मिल गेल अछि
व्यवसाय करबाक निमित्त
ओकरा एक्सपोर्ट इंर्पोट करबाक
करोड़पति बनबाक उत्कंठा छै
क्लब मे, अपना धंधा मे
बितबैत अछि राति
तेँ ओकरा अहाँक चरित्र पर
शंका छै
सावधान रहू द्रौपदी
नहि तऽ अहाँके चौक मे
जराओल जायत
तंदूर मे झोंकल जायत
अहाँक हड्डी।
सीता नहि बनू द्रौपदी
नहि तऽ रावण उठाके
लऽ जायत
हनुमान के सरकारी ओकील
बहाल कऽ लेल जायत
आब देरी नहि करू द्रौपदी
काली बनू
असुर भयाउनि
नयन अनुरंजित
लिधुर फेन उठा फोंका
भैरवी बनू द्रौपदी!