द्रौपदी सँ विरक्ति / राजकमल चौधरी

आन्हर घरक अन्धकारमे
आब साप नहि मारब
तोड़ि देब बरु तेल-पियाओल लाठी।
थाकल देहक अन्धकूपमे
आब झाँप नहि मारब
कतबो ग्राह-ग्रसित कयने हो मातल हाथी
आन्हर घरक अन्धकारमे
अहाँ साप कटबाउ
अपने देहक पंकिल जंगल-पहाड़मे
एकसरि बीन बजाउ।

(मिथिला मिहिर: 29.11.64)

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.