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द्वंद्व / कविता पनिया

और कैसे
इस अटवी की सघनता को पार करते
वह गंतव्य दिखाई दिया
जहाँ रचा था एक ग्रंथ
उन फैली हुई जड़ों पर बैठकर
जो उभर आई थी मिट्टी का सीना चीरकर
जिस अपूर्णता से मेरा द्वंद्व चल रहा था
उसमें कुछ परिशिष्ट तुम भी जोड़ रहे थे
पूर्णता के आभास के साथ
विलोम का समर्थन तुम्हें प्राप्त था
इस त्रिकालदर्शिता के पीछे कोई अंश था
जिसे तुम विराम दे रहे थे
मैं उस वृक्ष से लिपट ऊपर अविराम चढ़ रही थी