Last modified on 3 अक्टूबर 2007, at 18:43

द्वारिका प्रमाण / सूरदास


बार सत्तरह जरासंध, मथुरा चढ़ि आयौ ।
गयो सो सब दिन हारि, जात घर बहुत लजायौ ॥
तब खिस्याइ कै कालजवन, अपनैं सँग ल्यायौ ।
हरि जू कियौ बिचार, सिंधु तट नगर बसायौ ॥
उग्रसेन सब लै कुटुंब, ता ठौर सिधायौ ।
अमर पुरी तैं अधिक, तहाँ सुख लोगनि पायौ ॥
कालजवन मुचुकुंदहिं सौं, हरि भसम करायौ ।
बहुरि आइ भरमाइ, अचल रिपु ताहि जरायौ ॥
जरासिंधु हू ह्वाँ तैं पुनि, निज देस सिधायौ ।
गए द्वारिका स्याम राम, जस सूरज गायौ ॥1॥