धड़कनों के जलतरंग पर
बजता रहा प्रेमगीत का कोरस
और देह-सागर पर
तिरती रही सतरंगी मछलियाँ।
उस लय के विसर्जन का साक्षी हूँ,
इसलिए समुद्र तल पर
नहीं खोज पाता कोई अवशेष।
जीवन किसी संगी की प्रतीक्षा
नहीं करता।
वह आता है बिना कहे
और बिना बताए चला जाता है।
वर्णमैत्री के प्रतीकाक्षर गढ़ते हैं
कई तरह के अर्थपूर्ण विराम,
किन्तु यह नहीं बतलाते कभी
कि पूर्ण विराम के आगे क्या होता है।