शीश झुकाकर प्रभु प्रांगण, प्राणी-प्राणी में ईश चुने,
नाम जिह्वा से भले न ले, वह धड़कन ही ओंकार है।
संगीत के सप्त स्वरों से उर में, नूतन-मृदुल भाव झरे,
ताल-वाद्य का ज्ञान नहीं, वह धड़कन ही झंकार है।
युद्धभूमि में कर्मक्षेत्र में, स्व कर्त्तव्य से पग न डिगे,
अस्त्र-शस्त्र से नहीं सजी, वह धड़कन ही टंकार है।
कंदमूल फल खाकर तोषी, पर रत्न लख न डाह भरे,
जीवन आनंद के दर्पण की, वह धड़कन ही हुंकार है।
क्रोध-लोभ-द्वेष से वंचित, मद-काम-मोह से रहे परे,
मानवता का ऋणी सही, वह धड़कन ही उपकार है।
अन्याय देख ताप लहू में, पापी पर बन अंगार गिरे,
अनादि काल से अनाचार, की धड़कन ही संहार है।
जग-पीड़ा से आंदोलित, पर व्यथा से स्पन्दित रहे,
अश्रुपूरित नहीं आडम्बर, वह धड़कन ही भवसार है।
वनों-धरा से यथा आवश्यक, अतिरिक्त न दोहन हरे,
एक नहीं हृदय में जिसके, धड़कन में सर्व संसार है।