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आखिरकार अपने होंठों पर लिए अमन का पैग़ाम
तुम आए तो सही निकोसिया के नज़दीक इस आधे अधूरे कमरे में।
अब जाकर पांच हजार मीलों के बाद
खोज सके हो तुम शब्दों को?
जबकि काई भर चुकी तुम्हारे घर में
और समुन्दर में बिखर चुके सारे बाण।
शान्ति हो जैतून के बग़ीचे के वास्ते।
शान्ति हो इस अंधकार के वास्ते।
शान्ति हो उस इकलौती सीपी के वास्ते जिसने गीली नींद में छिपा कर रखा अपना रक्त।
शान्ति हो इस खंडहर के वास्ते।
छरहरे हाथों में किसी स्प्रिंग की तरह
धीरे धीरे अनावृत्त करते मुझे
जिस तरह किसान साफ़ करता है खुबानियों के रेशे।
क्या यह तुम हो चांदी की मानिंद चमकते हुए जबकि संसार है सीसा?
मेरे चारों तरफ़ सिर्फ सागरतट हैं।
तो शुरू किया जाए?
शहर जिनकी वे बातें किया करते हैं: वो रहे।
झोपड़ियां गांव राजधानियां।
हमारे रास्ते मिलते और जुदा होते रहे हैं
तो प्रवेश किया जाए यहां से सारे प्रस्थानों के लिए इकठ्ठा?
क्या हमें प्रस्थान करना चाहिए सारे प्रवेशों से?
दूर है हमारा शहर
और दूर है हमारी पलकों पर घायल पड़ी अमरता।
मुझे तुम्हारे छरहरे हाथ चाहिए।
मैं बहुत दिन ज़िन्दा नहीं रहूंगा ओ स्त्री।
पी जाओ मुझे
मैं बहुत दिन ज़िन्दा नहीं रहूंगा
मुझे मार डालो।
खड़िया के पहाड़ों की तरह स्थिर हैं बादल।
आसमान में गुज़रता है एक बगूला
और मुहल्ले की सरहद पर
गिरजाघर की मीनार तक पहुंच जाता है।
वहां तीन पेड़ हैं -
और एक दिन मैं उनका चित्र बनाऊंगा -
और मेरी एशट्रे भरी हुई है घोंघों से।
सफ़ेद है यह देर से आई सुबह
और कांपता है पौधा
और कांपती है मेज़।
क्या यह वही सुदूर चिंघाड़ है?
क्या यह वही ख़ून है जोड़ों से नसों की तरफ़ दौड़ता हुआ?
शान्ति हो सुबह की इस मधुमक्खी के लिए जो मुझसे मिलने आई है।
जब हम सड़कों को नापने आए थे
हमने सोचा था कि रात
इब्न खाल्दून की ‘मुगादीमा’ से भी छोटी है
और हमने कहा थाः उत्तरी अफ्रीका हमारा द्वीप है;
यह बचाएगा हमें चिलचिलाती गरमी और सिहरनभरी ठंड से।
हम युवा थे।
शायद हम उन खट्टे अंगूरों को चखने आए थे
जिनसे हमारे पूर्वज बचते आए थे।
इस तरह की मगजमारी में क्या अक्लमंदी हो सकती है?
कौन सी मौत है ज्यादा आसान?
(ध्यान दीजिए हमने यह नहीं कहा
“कौन सी मौत ज्यादा ख़ूबसूरत होती है”)
बंदरगाह और समेरा के पेड़ नीमबेहोश हैं
उसकी वजह से जो सिमटी पड़ी थी
एक कोने में कुंडली मारे।
हथियारों के बक्से में से अपना हिस्सा पाने के लिए
नौजवान दोस्त लड़ मरने को तैयार हैं।
इस तरह हम वैसे ही बने रहते हैं जैसे हम थे।
हमने सीखा पर इस मगजमारी का क्या?
धन्यवाद इमरू उल क़ैस तुम जो शिकार बने हत्या के।
सुबह की गौरैया
अनार के सीने के लिए भेजती है एक पंख।
एक बगूला उड़ता है
गलियों में अपने हिस्से के सेन्टीमीटर के वास्ते
और तमाम नन्हे छज्जे खड़े रहते हैं
अनन्त एकाकीपन में।
सुबह के आते ही खत्म हो गई सुबह।
तो कौन आएगा
और कौन आएगा?
और कौन रंगेगा चादर के किनारों को?
कौन मनाएगा उसकी उंगलियों के स्पर्श का उत्सव?
कौन मनाएगा सुबह की हैरानगी का उत्सव?
दीवार की सफ़ेदी पर चार नावें
चार नावें समुन्दर के तले में।
रास्ता रोकते हैं आईने।
मैंने चाही थी एक आवाज़ जो नहीं होती किसी और की जैसी।
तो भी मैं गुज़रता जाता हूं आईनोंभरे कमरे में:
क्या मुझे अब अपनी आंखें बंद कर लेनी चाहिये?
क्या मैं उस सब को अनदेखा कर दूं जिसे मेरी आंखें जान बूझ कर नहीं देखतीं?
इतनी दूर तक चलती गई है ये सड़क
पर आईना अब भी रास्ता रोकता है।
कभी कभी मैं लड़खड़ाकर गायब हो जाता हूं
छोटी खाड़ियों वाले पानी में।
बासपोरस की खाड़ी चमकती है मेरे सामने।
मंथन के बाद मेरे हाथों में घास
और एक सीपी।
चक्कर काटती है मछली झपटती है
तितलियों सेहियों सितारों और
डूबे आदमियों की आंखों को।
अनन्त खामोशी मार डाल रही है मुझे
कहां से आ रही है यह आवाज़?
आईनों से भरी दीवारों के बीच
थोड़ी देर में दोबारा से शुरू करूंगा मैं
लड़खड़ाना।
निकोसिया 9 मई 1986