Last modified on 27 मई 2010, at 22:55

धन्यवाद से कुछ ज़्यादा / निर्मला गर्ग

 
मैं किसी को याद करना चाहती हूँ
कहना चाहती हूँ धन्यवाद जैसा कुछ
आवाज़ वहाँ तक पहुँचेगी ?

वह जगह है
पहाड़ के ऊपर एक छोटी-सी
राशन की दूकान
वहाँ से मुझे आटा उधार मिला था
और थोड़ी-सी दाल

आटे का गेहूँ सीला हुआ था
दाल में कंकड़ों के साथ इल्लियाँ थीं
फिर भी इन्होंने बचाएँ मेरे प्राण
बनाए रखा भरोसा इस दुनिया पर

मैं कहना चाहती हूँ
वह शब्द
जो धन्यवाद से कुछ ज़्यादा हो

                  
 रचनाकाल : 1987