काम क्रोध वश करै, दाम धरि धाम न राखै। दया धर्म सामर्थ्य, अर्थ मुख झूठ न भाखै॥
पर-निन्दा परिहरै, करै ममता कछु नाही। नहि विलखै नहि हँसै, वसै सत संगति माहीँ॥
सहज भाव सब साँ मिलै, दाव बिना विनु विग्रही।
धरनी धन सो आतमा, ऐसो राम-अनुग्रही॥18॥
काम क्रोध वश करै, दाम धरि धाम न राखै। दया धर्म सामर्थ्य, अर्थ मुख झूठ न भाखै॥
पर-निन्दा परिहरै, करै ममता कछु नाही। नहि विलखै नहि हँसै, वसै सत संगति माहीँ॥
सहज भाव सब साँ मिलै, दाव बिना विनु विग्रही।
धरनी धन सो आतमा, ऐसो राम-अनुग्रही॥18॥