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धन्य देश वह / अमरेन्द्र

धन्य-धन्य वह देश धन्य है जिसके बाल-किशोरी
अपनी माटी, हवा और पानी की रक्षा में रत
राष्ट्रवेदी पर चढ़ जाने की होड़ा-होड़ी, उद्धत
जिन्हें देख कर डर जाती है फाँसी की भी डोरी ।

धन्य-धन्य वह देश धन्य है जिसके बाल-किशोरी
कड़ा और कंगन ही समझे कर की हथकड़ियों को
नाच रहा हो काल-सर्प पर लिए प्रलय-लड़ियों को
क्या समझेगा तंत्रा-मंत्रा पर चलता हुआ अघोरी ।

धन्य-धन्य वह देश धन्य है, जिसके बाल-किशोरी
जवालामुखी लिए कंधों पर दौड़ रहे रेतों पर
फूलों की घाटी में जैसे नाद रथों का घर्घर
ज्वालशैल से सागर की लहरों की है बरजोरी ।

लिखी रहेगी कथा अमर यह देश-देश के मन पर
क्या जल, वायु, अग्नि, गंध पर, ऊपर नील गगन पर ।