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धरती-४ / ओम पुरोहित ‘कागद’

सूर्य से
बोलना चाहती है
बेचारी धरती
इसी लिए
बढ़ती है
आकाश की ओर
धीरे-धीरे
न जाने क्यों
लोग उसे
बताते हैं आंधी !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"