चाहती है
अकाल से
दूर हो जाए
अदृश्य
अलग
बहुत दूर
परन्तु
कैसे चले
कैसे उडे़
न पंख
न पग !
अकाल जानता है
उसकी यह रग !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"
चाहती है
अकाल से
दूर हो जाए
अदृश्य
अलग
बहुत दूर
परन्तु
कैसे चले
कैसे उडे़
न पंख
न पग !
अकाल जानता है
उसकी यह रग !
अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"