जीवन में ऊँचाई
मेरा एक स्वप्न है
किन्तु हर डग भरने के बाद
रहना इसी धरती पर चाहती हूँ।
यह धरती एक ठोस धरातल ही नहीं
एक ठोस सपना भी है
जो गिरने वाले को अपनी
गोद में समा लेती है।
ऊँचाई पर उठने वाले हर शख्स को
आखिर धरती ही नसीब होती है
कितनी भी ऊँचाई पर रहूँ मैं
अन्ततः धरती में समाना है मुझे।
मैं ठोस धरती पर
अपने पाँव जमाये रखना चाहती हूँ
और वहीं से आकाश की
ऊँचाई छूना चाहती हूँ।