धरती नेह से
लरजती है संवरती है
उपजाती है सरस जीवन,
सहन करती है बोझ
उपेक्षा का,
घृणा का
और अति होने पर
कम्पित हो
जता देती है अपना आक्रोश
नहीं अब और नहीं
धरती नेह से
लरजती है संवरती है
उपजाती है सरस जीवन,
सहन करती है बोझ
उपेक्षा का,
घृणा का
और अति होने पर
कम्पित हो
जता देती है अपना आक्रोश
नहीं अब और नहीं