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धरती करे बियाह / जयराम सिंह

धरती करे बियाह, उतरलै बदरा के बरियात रे।
बाजा गाजा नाच मोजरा सब कुछ लैलक साथ रे॥

(1)
धरती सज-धज बनल बहुरिया,
कसमसाल गदराल उमरिया।
बदरा बे टेढ़की पर से नभ दुल्हा लख मुस्कात रे।
धरती करे वियाह ... बरियात रे।

(2)
छितिज छोर तट पर समियाना,
जेकर नीचे होवे गाना,
धुआं-पानी खारि हावा सिर पर घट ले जात रे।
धरती करे बियाह ... बरियात रे॥

(3)
दादुर बजवै मुंह के बाजा,
सहनाई बाजा के राजा,
बजा रहल हे सब झिंगुर मिल धुन-पर धुन-धुन माथ रे।
धरती करे बियाह ... बरियात रे॥

(4)
ठनका ठनके बाजे तबला,
बांध घंघरुआ नीचे चपला,
पनसोखा के वीना पर सरगम बजवे बरसात रे।
धरती करे बियाह ... बरियात रे॥

(5)
नभ सांवर धरती है गौरी, जइसे कांधा-राधा-जोड़ी,
चंदा के उबटन से दुलहिन के देहिया अवदात रे।
धरती करे बियाह ... बरियात रे॥