Last modified on 11 अगस्त 2008, at 21:31

धरती का गीत / महेन्द्र भटनागर

हमें तो माटी के कन-कन से मोह है
असम्भव, सचमुच, उसका क्षणिक बिछोह है,
निरंतर गाते हम उसके ही गीत हैं
हमें तो उसके अंग-अंग से प्रीत है !