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धरती के दर्द / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’

संसार के सारगर्भ में जाकर
देखो तो कई राज मिलेंगे।
ढूंढ रहे वीरों के मरघट
तपोभूमि बने आज मिलेंगे।
मातृभूमि तुम सब की गरिमा
गौरव गाथा ताज़ तुम्हारा।
मत बांधो सीमा में धरती
भाव के बिखरे साज़ मिलेंगे।

आपस में मत बाँटो खुद को
तुम सारे मेरे लाल प्रिय हो।
क्यूँ कटते सरहद में बंटकर
एक दूजे के ही बन्धु हो।
मातृभूमि के नाम पे मिटते
वीरों को सम्मान मिलेंगे।
पर सोचो... इस माँ के आँचल
किसके रुधिर से लाल मिलेंगे?

करती विचरण पिण्ड रूप
इहलोक हमारे गर्भ समाए।
जल-थल मिल जब सम दिखते
रेखाओं में कैसे बंध पाए?
विध्वंसक बरसा कर सीने
घायल कर, कब तक साथ चलेंगे?

अंतर्मन जब तड़प उठे
भूचाल के ही हालात मिलेंगे।
संसार के सारगर्भ में जाकर
देखो तो कई राज मिलेंगे।