ढेर सुनली -
तोर कोइली बोली
तोता-मैना के भाखा,
गीत चौमासा के।
अब तो -
भूख के बोलीऽ हे
पेट के आसा,
तूँ, जहाँ, निगलऽ हऽ
रसगुल्ला, मुरगवा के देह
गँटकऽ हऽ दूध से बोतल तक
उहें, हमर नींद
सपना हे - बतासा बड़ी महँगा हे।
ई समाजवाद तो लगऽ हे
सात समुन्नर के कहानी,
ढेला-पत्ता के विआह
कुछ अदमी
के बात कहऽ,
ऊ धरती के
जहाँ हम ही