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धरती गिनते-गिनते / कुमार रवींद्र

तारे दिन में भी होते हैं
यह सभी जानते हैं
धूप के कारण दिखाई नहीं देते ।
यदि मैं उन्हें दिन में गिनना चाहूँ
तो तुम्हारी निगाह मुझे क्या कहेगी
यह मैं जानता हूँ ।
 
दिन में तारे गिनना वह अनोखी कला है
जो मुझे आती तो नहीं
पर जिसे मैं सीखना चाहता हूँ |
जितनी गिनती मुझे आती है
वह तो दुनिया गिनने को ही काफी नहीं है ।
आकाश गिनने की गिनतियाँ अलग होती हैं -
मैं उन्हीं गिनतियों की बात करता हूँ ।
धरती गिनते-गिनते एक समय आता है
जब लगता है
हम स्वयं गिनती हो गए हैं ।
उस समय धूप में जो अँधेरा होता है
वह तारे गिनने के लिए काफी होता है ।
मुझे लगता है
हम रोशनी में गिनने की जो बराबर ग़लतियाँ करते हैं
उन्हें ही रात में तारे गिन-गिन दोहराते हैं ।
मैं रोशनी की ग़लतियाँ नहीं
उसकी ख़ूबियाँ गिनना चाहता हूँ ।