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धरती पर कवि (एक) / कुमार कृष्ण

धरती पर कवि-
तितली को फूल
फूल को तितली में बदलता है
धरती पर कवि-
ईंट को घर, घर को बाँसुरी बनाता है
धरती पर कवि-
बहती हुई नदी पर आग का घर बनाता है
धरती पर कवि-
लोहा बीज कर सपने उगाता है
वह छोटे से काग़ज़ पर
बहुत बड़ी दुनिया बसाता है
वह सिखाता है-
डिब्बे में चाँद को बंद करने का मंत्र
धरती पर कवि-
शब्दों का गोगियापाशा है
धरती पर कवि-
रोटी को बैल, बैल को रोटी लिखता है
वह लिखना चाहता है-
धरती जितनी बड़ी कविता
धरती पर कवि-
ता उम्र सिलता है दुःख के लिए तरह-तरह के कपड़े
बनाता है रंग-बिरंगी छतरियाँ
उसकी कोई दिलचस्पी नहीं मंगल ग्रह में
वह इसी धरती पर लेना चाहता है जन्म फिर से
लिख सके राजा का इतिहास
उसका भूत-वर्तमान
तय कर सकें लोग अपना भविष्य
धरती पर कवि-
एक बार फिर से लिखना चाहता है-
धरती की नयी वर्णमाला।