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धरती रो बीच !/ कन्हैया लाल सेठिया

घणां ही है
बतावणियां
जेई रोप‘र
धरती रो बीच,
धणाईं है
उठावणियां
राग भेळी राग रळा‘र
झूठी गंगाजळी,
बा ने ठा है‘क
भीड़ रै हुवै है
खाली जीभ‘र कान
आंख्या रा आंधा
उठावै थोकाथोक कूड़
को ताकड़ी चाहीजै न बाट
के बाणियूं‘र जाट
सै करै
चिमतकार नै निमसकार,
लादै कोनी तो कोई
साच रो लेवाळ
कदै कदास आवै ही
तो मांगै
मासो‘र का तोळो
कीं न है चीज री पीक
चाहीजै रोळो !