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धरती रो सपूत / हुसैनी वोहरा

माटी सूं जलमै
माटी मांय रमै
माटी रो पूत
किसान तपै तावड़ै मांय
सैवै सीत
भीजै बिरखा-जळ मांय
संवारै धरती रो रूप
भरै मिनखां रो पेट
धरती रो अन्नदाता किसान
ऊजळो मन
काळो तन
सब सूं राखै हेत
साच री आन
धरती रो सपूत किसान।