धरती हमारि ! धरती हमारि !
है धरती परती गउवन कै औ ख्यातन कै धरती हमारि |
धरती हमारि ! धरती हमारि !
हम अपनी छाती के बल से धरती मा फारु चलाइत है |
माटी के नान्हें कन - कन मा , हमही सोना उपजाइत है ||
अपने लोनखरे पसीना ते ,रेती मा ख्यात बनावा हम |
मुरदा माटी जिन्दा होइगै,जहँ लोहखर अपन छुवावा हम ||
कँकरील उसर बीजर परती,धरती भुड़गरि नींबरि जरजरि |
बसि हमरे पौरख के बल ते,होइगै हरियरि दनगरि बलगरि ||
हम तरक सहित स्याया सिरजा , सो धरती है हमका पियारि ...
धरती हमारि ! धरती हमारि !
हमरे तरवन कै खाल घिसी , औ रकत पसीना एकु कीन |
धरती मइया की सेवा मा , हम तपसी का अस भेसु कीन ||
है सहित ताप बड़ बूँद घात , परचंड लूक कट - कट सरदी |
रोंवन - रोंवन मा रमतु रोजु , चंदनु अस धरती कै गरदी ||
ई धरती का जोते - जोते , केतने बैलन के खुर घिसिगे |
निखवखि,फरुहा,फारा,खुरपी,ई माटी मा हैं घुलि मिलिगे ||
अपने चरनन कै धूरि जहाँ , बाबा दादा धरिगे सम्हारि ...
धरती हमारि ! धरती हमारि !
हम हन धरती के बरदानी ,जहँ मूंठी भरि छाड़ित बेसार |
भरि जात कोंछ मा धरती के,अनगिनत परानिन के अहार||
ई हमरी मूंठी के दाना , ढ्यालन की छाती फारि - फारि |
हैं कचकचाय के निकरि परत,लखि पौरुख बल फुर्ती हमारि||
हमरे अनडिगॆ पैसरम के , हैं साक्षी सूरज औ अकास |
परचंड अगिन जी बरसायनि,हमपर दुपहर मा जेठ मास ||
ई हैं रनख्यात जिन्दगी के ,जिन मा जीतेन हम हारि-हारि ...
धरती हमारि ! धरती हमारि !