मुरझाई सी अमराई में
है गुनगुन
भौरों की आहट
खिले बौर अमिया में
मंजरी की सुगंध छाई
धूप ने पकड़ा
प्रकृति का धानी आंचल
देख सुहानी रूत
फूली सरसों, पीली सरसों
इतराती है जौ की बालियां
गया शिशिर
धूप खिली,झूमीं वल्लरियां
फुनगी पर सेमल की
निखरी हर कलियां
महुआ की डाल पर
अकुलाया है मन
चिरैया की पांख पर
उतर आया
स्मृति का मदमाता
केसरिया बसंत
ठूंठ से फूटती
नवपल्ल्व
टेसू से टहक नारंगी लौ
नव कोंपल ने आवाज लगाई
छोड़ मन की पीड़ा
देख ले तू मुड़कर एक बार
राही
धरा पर बसंत ऋतु आई