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धर्मन्धुर / नाथूराम शर्मा 'शंकर'

ध्रुवता धार धर्म के काम,
धोरी धीर-वीर करते हैं।
करते उत्तम कर्मारम्भ, सुकृती गाढें सुकृतस्तम्भ,
नामी निरभिमान निर्दम्भ, दुष्टों से न कभी डरते हैं।
लक्षण अनुत्साह के झाड़, उर आलस्यासुर का फाड़,
कतरें कठिनाई की आड़, संकट औरों के हरते हैं।
प्यारे पौरुष प्रेम पसार, विचरें विद्या-बल विस्तार,
बाँटें निज कृत आविष्कार, उद्यम देशों में भरते हैं।
प्रेमी पूरा सुयश कमाय, ब्रह्मानन्द महा फल पाय,
‘शंकर’ स्वामी के गुण गाय, ज्ञानी शोक-सिन्धु तरते हैं।