उत्तर से अधिक
दक्षिण में
धर्म की ग्रंथियाँ हैं
ग्रंथियों का जीवन
कर्मेंद्रियों से जीते हैं आदमी
जीते आदमियों के
जी और जहान में
पैसा नाचता है,
पैसे के रूप में
भैरव का भैंसा नाचता है,
नाच में
‘अनहद’ नाद का ढोल बजाता है,
परलोक की ठगी से
कहीं कोई नहीं बचता है
रचनाकाल: १५-०६-१९७६, मद्रास