कूल पसरते
गये छितिज तक
धारा हुई लँगोटी
दहरा१ निगले
नीर नदी का
डबरे लगते रोटी
खड़ी झाड़ियाँ
तटबंधों पर
आपस में बताएँ
बहता पानी दूर
चलो हम
प्याऊ से पी आएँ
नाप रहे
लमतने२ ने नज़र से
झरबेरी की बोटी
बचे-खुचे
पानी पर काई
थून३ घरों के देती
धरन धरे
घाटों पर बैठे
कंकड़, पत्थर, रेती
धरती-खटिया
पर निगडौरे४
धूप साँझ भर लोटी
जल पटरी पर
हवा दहकती
लौहगामिनी बनके
गाँव नदी के
भक-भक
अड्डे रहते
आग पहन के
धूल छाँव के
लिए चढ़ेगी
ताक डगलिया मोटी
टिप्पणी-
१.दहरा-पानी के भराव का गहरा गड्ढा।
२.लमतने-ललिता नामक फूलदार पेड़।
३.थून-नींव।
४.निगडौरे-बिना विधावन के।
-रामकिशोर दाहिया