वो साधु थे और कहाँ-कहाँ से
नहीं आए थे
वो मौलवी थे और न मालूम
कितने धूल-धक्कड़ खाकर इकट्ठे हुए थे
दोनों ने कहा बिल्कुल निरापद
न्यायाधीश की तरह :
धर्मयुद्ध की समप्ति के बाद
हमीं तो बचेंगे
हमीं तो भोगेंगे
तमाम आसाइशें
धर्मयुद्ध में मारे जाएंगे
सारे भक्तगण