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धिक-धिक धिक्कार थीक / शम्भुनाथ मिश्र

धिकधिक धिक्कार थीक जकर एहन दृष्टि छैक
परिणयकेर चौकठिपर ठाढ़ि कोनो बालापर,
सिनुरायल तरुणी पर चपचपाय मोन अपन
भूखक व्याकुलतासँ बिसरि अपन मानवता
लोकलाज छोड़ि छाड़ि बनिकय विचारहीन
झोंकि दैछ अपनाकेँ हवसक शिकार बूझि
किन्तु कहाँ साहस क्यौ जुटा सकल पुरुष अपन,
सिउँथक यदि लाली हो उज्जर भऽ गेल जकर
दैवक ओ मारल हो किंवा झमारल हो,
बारल हो, बाझल हो किंवा भ्रम जालहिमे
धूर्त्तक परतारल हो, तकरा सिनेह दैत हाथ पकड़ि
ऊपर कय, करत तकर जीवनकेँ फेरो प्रकाशमान,
जीवन छै भार बनल तकरा आधार दैत, ठमकल
तेहि जिनगीकेँ प्रेमकेर इन्धन दय, कय सकय चलायमान
बाबहु विचार करू, नारीकेर पूजा छल करइत
समाज जतय, शक्तिक आधार मानि, आनन्दित
जीवन छल ताही समाज बीच नारी उपेक्षित सन
चकुआयल बिधुआयल शून्य दिस तकैत अछि
दूषित समाज बीच चेतना जगाउ पुनः
पर घरकेर नारीकेँ मानय माताक मूर्ति
तखने समाज ओ विकासक स्वदेश हैत
आन्तरिक ताहि लेल परिवर्तन प्रयोजनीय
थिक ई सन्देश अपन आजुक समाज लेल