जीवकी दया जेहि जीय व्यापै नहीं,
भुखे आहार प्यासे न पानी।
साधुसों संग नहि शब्दसाँ रंग नहि,
बोलि जाने न मुख मधुर वानी॥
एक जगदीश को शीष अर्पे नहीं,
पाँच पच्चीस बहु बात ठानी।
रामको नाम निज धाम विश्राम नहि,
धरनि कह धरनि सो धिग्ग प्रानी॥5॥
जीवकी दया जेहि जीय व्यापै नहीं,
भुखे आहार प्यासे न पानी।
साधुसों संग नहि शब्दसाँ रंग नहि,
बोलि जाने न मुख मधुर वानी॥
एक जगदीश को शीष अर्पे नहीं,
पाँच पच्चीस बहु बात ठानी।
रामको नाम निज धाम विश्राम नहि,
धरनि कह धरनि सो धिग्ग प्रानी॥5॥