कागलै नै कागलौ
अर कुरजां नै कुरजां ई
रै‘वण दो
चाहै किणी रौ पीव जावै परदेस
तो कोई रो बीरो आवै घरां,
आं बापड़ै भोळा-ढाळां
पंखेरूआं माथै
रीस बळणौ
कै राजी हुवणौ
दोनूं रो ई अरथाव
उणां नै ठा नीं।
मिनक्यां रो गैलो काटणो
अर गधियां रो जीवणो बगणौ
कै कोचरी रे बोकणै रो
न्यारो मतळब बणावणौ
उणा साथै न्याय नीं,
धरती अर धरती री
प्रकृति रो धीणाप
फकत थारौ ई नीं
पंख-पंखेरू
जीव-जिनावर
अर थारौ म्हारो सगळां रो ई है।