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धुंध में-1 / नंदकिशोर आचार्य

अपनी ही धुंध में
खोई रहती है वह

सिहरती कभी
खुलती भी है कुछ-कुछ
जितना आविष्कृत कर पाता
                   सूरज

जाते ही उस के
धुंध में फिर अपनी ही
खो जाती घाटी ।


29 दिसम्बर 2009