अपनी ही धुंध में
खोई रहती है वह
सिहरती कभी
खुलती भी है कुछ-कुछ
जितना आविष्कृत कर पाता
सूरज
जाते ही उस के
धुंध में फिर अपनी ही
खो जाती घाटी ।
—
29 दिसम्बर 2009
अपनी ही धुंध में
खोई रहती है वह
सिहरती कभी
खुलती भी है कुछ-कुछ
जितना आविष्कृत कर पाता
सूरज
जाते ही उस के
धुंध में फिर अपनी ही
खो जाती घाटी ।
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29 दिसम्बर 2009