धुआँ
अपनी ही मंशा में
तत्क्षण,
उठता है ऊँचा
आकाश में
छितरा जाता है
महत्वाकांक्षा
पल भर में
ऊपर उठने की
बस तमाशे की तरह
तमाम हो जाती है
अपने ही फल के
पहले ही
उसका फूल तोड़ खाती है ।
धुआँ
अपनी ही मंशा में
तत्क्षण,
उठता है ऊँचा
आकाश में
छितरा जाता है
महत्वाकांक्षा
पल भर में
ऊपर उठने की
बस तमाशे की तरह
तमाम हो जाती है
अपने ही फल के
पहले ही
उसका फूल तोड़ खाती है ।