Last modified on 20 अप्रैल 2017, at 10:36

धुआँ उठने को है / खगेंद्र ठाकुर

खूब उगलो ताप
ढेर-ढेर फेंको आग
ओ सूरज!
जल गये आसमानी बादल,
तलैयों के प्राण गये,
धरती की कोख जली,
जल-जल कर बिदक गयी
फसलों की हरी- भरी क्यारी!
और जलें,
तुम्हें जीवन करें अर्पित सभी
पशु-पक्षी और आदमी
बराबर हैं सभी अब।
कायम करो ऐसे ही समता का राज,
अर्पित हैं सभी तुम्हारे प्रताप को,
सह नहीं पाते थे आग
ओ सूरज!
इनके पेट की आग
उग्रतर हैं तुम्हारे प्रताप से,
खूब उगलो ताप,
लाख फेंको अग्निवाण,
ये नहीं सहेंगे अब आग।
धुआँ पेट की आग का,
धुआँ जीवन के अरमानों का
उठने को है,
तुम्हारे प्राणघाती किरणों पर छाने को है।