आसमान कुछ नहीं कहता,
पेड़ कुछ नहीं कहते,
तार पर गदराया बैठा पंछी युगल भी कुछ नहीं कहता
सब क्यों चुप हैं ?
यही विश्लेषण करने को मेरी वाचालता भी चुप है।
सुबह चुप रहती है तो धूप के चलने की चाप
सुनाई पड़ती है।
मैं सुन पाती हूँ
उसका बालकनी पर उतरना,
पेड़ों की डालियों पर पायल छनकाना,
गदराए पक्षियों का
हल्की गुनगुनाहट पा,जीमना।
दूब के शीर्ष पर पड़े शिशिर बिन्दुओं का सप्तरंगी हो उठना।
सच कुनकुनाता सुख
सुबह की धूप सुनने का
चुप्पी तोड़ने का मन नहीं करता।
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