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धूप / उषा यादव

लो, खिड़की से झाँकी धूप।
गोरी, उजली बाँकी धूप।

कमरे में घुस, देखी मेज।
खिल-खिल हँसी, बिखेरा तेज।

फिर पहुँची कुर्सी के पास।
लगातार बिखराती हास।

गई पलंग पर इसके बाद
किए पहाड़े-गिनती याद।

रही खेलती काफी देर।
जब सुनाई दी माँ की टेर।

टा-टा करे चलदी धूप।
कल फिर आना जल्दी धूप।