रूप रेत भर
धूप खेत भर
फैल गई है चादर ताने
तट पर
सूरज नभ पर
हाँफ रहा है आशा कर-कर
लौटेगी उसकी यह आभा
भर-भर रेत
नदी के तट पर
पर कैसे लौटेगी
छोड़ उम्र भर
अभी-अभी तो आई है
धूप कहाँ भेटी
रेती को
जी भर !
रचनाकाल : 10.03.2008