बिजली के तारों पर
बैठे हैं फगुनाए सुग्गे
पेड़ों से उतर आई लॉन पर
धूप की गिलहरी
एक फूल गुड़हल का
खिल गया
आँखों के बाग़ में
साँस हुई शहनाई
हरी हुईं इच्छाएँ
कोंपल की बास से
हो गई सुनहरी परछाईं
बेंच के किनारे तक
आ पहुँची धूप-गुलदुपहरी
काँटों के बाड़ पर
बिछे हुए यादों के गुलमोहर
हो गए सलौने
बौराए आम के
दरख़्त के नीचे आ बैठे
मन के कस्तूरी मृगछौने
उस पर अब
कोयल-मैनाओं की लग रही कचहरी