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धूप की चिरैया / तारादत्त निर्विरोध

उड़ती है पार-द्वार धूप की चिरैया ।

 

पानी के दर्पण में, बिम्ब नया उभरा,

बिखर गया दूर-पास, एक-एक कतरा ।

पलकों-सी मार गई धूप की चिरैया ।

 

पूरब में कुंकुम का, थाल सजा-सँवरा,

किरणों-सी दुलहन का, रूप और निखरा ।

आँगना गई बुहार धूप की चिरैया ।

 

यहाँ-वहाँ, इधर-उधर, फुदक-फुदक नाचे,

सुख-दुख की आँखों के, शब्दों को बाँचे ।

रोज़ पढ़े समाचार धूप की चिरैया ।