Last modified on 8 मार्च 2011, at 20:40

धूप की मिठाई / हरीश निगम

धूप की मिठाई के दिन
कंबल के दिन, रजाई के दिन,
फिर आए धूप की
मिठाई के दिन!

मफलर की धाक जमी
चले गए छाते,
अब स्वेटर-कोट यहाँ
फिरते इतराते।
बूँदों का खेल खतम
कुहरे की बारी,
थर-थर-थर काँपने की
सबको बीमारी।

सिगड़ी के दिन,
सिंकाई के दिन,
फिर आए आग की
बड़ाई के दिन