धूप में बैठी कुछ औरतें
एक-दूजे की जुएं बीनती
अपने-अपने मर्द की
आदतों के पुराण बाँचती
भाग निकलने वालियों के
किस्से बखानतीं
ऊँघने लगतीं
धूप में बैठी औरतें
सुपारी चबातीं
मुँह चलातीं
बे-वजह बतियातीं
बा-वजह बुढ़ातीं
धूप में बैठी औरतें
काम-काजी महिलाओं की खिल्ली उड़ातीं
उन पर फबतियाँ कसतीं
बैठे-ठाले
मुँह बिचकातीं
धूप में बैठी औरतें
दो-सूती पर इच्छाएं काढ़तीं
इक-दूजी को उघाड़तीं
कुछ बूझतीं
कुछ पूछतीं
खुद से खुद को छिपातीं
धूप में बैठी औरतें
अतीत का नरक ढोतीं
जागते में सोतीं
धूप ही से अनभिज्ञ
धूप में बैठीं औरतें