Last modified on 10 जनवरी 2021, at 00:31

धृतराष्ट्र / शीतल साहू

देखो धृतराष्ट्र
एक बार फिर इतिहास अपने को दोहरा रही
फिर एक बार महाभारत की रणभेरी बज रही
एक बार फिर आर्यवर्त की भूमि
अपने संतानों के खून से लाल होने जा रहीं
फिर रिश्ते और मर्यादाओं की बाँध टूटने जा रही।

फिर आपस में लड़ने पर आमादा है भाई भाई
स्वार्थ, अहम और द्वेष से भ्रमित हो
वर्चस्व की लड़ाई से प्रेरित हो
प्रेम और समरसता को तजकर
न्याय और मानवता को भुलाकर।

तुम तो राजा हो
क्या शकुनि के कपट को रोक नहीं सकते
क्या दुर्योधन को समझा नहीं सकते
क्या दुशासन को दंडित नहीं कर सकते
क्या पांडवो के लिए दूजा हस्तिनापुर बसा नहीं सकते
क्या पांडवो को, पांच गाँव भी दे नहीं सकते।

क्या कुंती की आंसू पोछ नहीं सकते
क्या द्रौपदी के अस्मिता की रक्षा नहीं कर सकते
क्या गांधारी के आंखों की पट्टी हटा नहीं सकते
क्या सत्यवती के वंश को बचा नहीं सकते।

क्या अब भी आंखों को मूंदे रहोगे
क्या अब भी पांडवो से अन्याय का समर्थन करोगे
क्या अभी भी द्रुत क्रीडा के छल का आनंद लोगे
क्या अभी भी संजय से युद्ध का हाल जानोगे
क्या अब भी सगे सम्बधी को मरते देखोगे।

सुनो धृतराष्ट्र
इस बार ना चूको
पिछली गलती से कुछ सीखो
इस अवसर को मत छोड़ो
इस बार बचा लो अपने वंश को
इस बार बचा लो आर्यवर्त को।

सुन लो भीष्म की उपदेश नीति
सुन लो विदुर की धर्मनीति
सुन लो कृष्ण की राजनीति
सुन लो पांडव की विनती।

सुनो धृतराष्ट्र
अब तो बंद आँखे खोलों
मोह और लिप्सा को त्यागो
अन्याय और वैमनस्यता को छोड़ो
उद्दंडता और पाप को दंडित करो
न्याय और सद्भाव के राह पर बढ़ो।

कौरवों को समझाओ
पांडवो को अपनाओ
मानवता और समता को धारण करो।
इस बार महाभारत नहीं महान भारत का सर्जन करो।