ध्यान-रहित क्या कीजै ध्यानै। जो अ-वाच्य ताहि क्यों बक्खानै।
भव-समुद्रे सकल जग बहेउ। निज स्वभाव न केहूहि गहेउ।
मंत्र न तंत्र न ध्येय न धारण। सर्ब इ रे मूर्ख विभ्रम-कारण।
अ-समल चित्त न ध्याने खरडहु। सुख रहते ना अपने झगड़हु।
नाद न बिन्दु न रवि न शशिमंडल। चित्तराज स्वभावे मुक्त।
ऋजु रे ऋजु छाडि ना लेहु रे वंक। नियरे बोधि न जाहु रे लंक।
हाथे रे कंकण ना लेहु दर्पण। अपने आप बूझहु निज मन।
पार-वार सोई गाजै। दुर्जन-संगे डूबे जाये।
बायें दाहिने जो खाल-बेखाला। सरह भनै बप्पा ऋजु बाट भइला।