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ध्यान : / गोबिन्द प्रसाद


सूने कोने
दीवारें, द्वार
रात :गहन,निबिड़
अंधकार
भटकते पाखी की पुकार
आसमान को चीरती लक़ीर
स्मृति के दरिया में
तुम्हारा ध्यान; लहर-द-लहर कौंधता
कोई उम्मीद फ़क़ीर