अन्न और रोज़गार का ज़िक्र उसे नहीं भाता
समता और न्याय गए दिनों की बातें हो गईं
व्यस्त है नई-नई पोशाकें छाँटने में
मेरी कविता इन दिनों
रचनाकाल : 1998
अन्न और रोज़गार का ज़िक्र उसे नहीं भाता
समता और न्याय गए दिनों की बातें हो गईं
व्यस्त है नई-नई पोशाकें छाँटने में
मेरी कविता इन दिनों
रचनाकाल : 1998